लियो टॉलस्टॉय की कहानी

लियो टॉलस्टॉय की कहानी

लियो टॉलस्टॉय की कहानी: रीछ का शिकार, Leo tolstoy best story richh ka shikar, leo tolstoy story on theinstantstory.com
हम एक दिन रीछ (Bear) के शिकार को निकले। मेरे साथी ने एक रीछ पर गोली चलाई। वह ज्यादा गहरी नहीं लगी। रीछ भाग गया। बर्फ पर लहू के चिन्ह बाकी रह गए। हम एकत्र होकर यह विचार करने लगे कि तुरंत पीछा करना चाहिए या दो-तीन दिन ठहरकर उसके पीछे जाना चाहिए। किसानों से पूछने पर एक बूढ़ा बोला- ‘तुरंत पीछा करना ठीक नहीं, रीछ को टिक जाने दो।’ मेरा साथी तुरंत रीछ का पीछा करना नहीं चाहता था, पर मैंने कहा, ‘झगड़ा करने से क्या मतलब। आप सब गांव को जाइए।

मैं और दुगार (मेरे सेवक का नाम) रीछ का पीछा करते हैं। मिल गया, तो वाह-वाह! दिन भर और करना ही क्या है?’ और सब तो गांव के लिए चले गए, मैं और दुगार जंगल में रह गए। पहले-पहले तो हम उसकी खोज के पीछे बड़े-बड़े वृक्षों के नीचे चलते रहे, परंतु घना जंगल आ जाने पर दुगार बोला, ‘अब यह राह छोड़ देनी चाहिए, वह यहीं कहीं बैठ गया है।’ पांच सौ कदम जाने पर सामने वही चिन्ह फिर दिखाई दिए। उसके पीछे चलते-चलते एक सड़क पर जा निकले। चिन्हों से जान पड़ता था कि रीछ गांव की ओर गया है।
 
एक मील आगे जाने पर...
 
एक मील आगे जाने पर चिन्हों से ऐसा प्रकट होता था कि रीछ सड़क से जंगल की ओर नहीं, जंगल से सड़क की ओर आया है। उसकी उंगलियां सड़क की तरफ थीं। मैंने पूछा कि दुगार, क्या यह कोई दूसरा रीछ है? दुगार- ‘नहीं, यह वही रीछ है, उसने धोखा दिया है।’ आगे चलकर दुगार का कहना सत्य निकला, क्योंकि रीछ दस कदम सड़क की ओर आकर फिर जंगल की ओर लौट गया था।
 

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दुगार- ‘अब हम उसे अवश्य मार लेंगे। आगे दलदल है, वह वहीं जाकर बैठ गया है, चलिए।’ दो मील चलकर हम झील के उस पार पहुंच गए। दुगार- ‘देखो, सुनसान झाड़ी पर चिड़ियां बोल रही हैं, रीछ वहीं है। चिड़ियां रीछ की महक पा गई हैं।’ हम वहां से हटकर आधा मील चले होंगे कि फिर रीछ का खुर दिखाई दिया। संध्या हो चली थी। हम जूते उतारकर धरती पर बैठ गए और भोजन करने लगे। दुगार ने बर्फ ठीक करके उस पर कुछ झाड़ियां बिछाकर मेरे लिए बिछौना तैयार कर दिया। मैं ऐसा बेसुध सोया कि इसका ध्यान ही न रहा कि कहां हूं? जागकर देखता हूं कि एक बड़ा भारी दीवानखाना बना हुआ है। मैं चकित हो गया। परंतु तुरंत मुझे याद आया कि यह तो जंगल है, यहां दीवानखाना कहां? असल में श्वेत खंभे, तो बर्फ से ढंके हुए वृक्ष थे, रंगदार दीपक उनकी पत्तियों में से चमकते हुए तारे थे। अचानक हमें किसी जानवर के दौड़ने की आहट मिली। हम समझे की रीछ है, परंतु पास जाने पर मालूम हुआ कि जंगली खरहा है। जब हम गांव पहुंचे, तो मेरा साथी सो गया था। मैंने उसे जगाकर सारा वृत्तांत सुनाया और जमींदार से अगले दिन के लिए शिकारी एकत्र करने को कहा। मैंने देखा कि मेरा साथी वस्त्र पहने तैयार है और अपनी बंदूक ठीक कर रहा है।

मैं- ‘दुगार कहां है?’ साथी-‘उसे गए देर हुई। वह कल के निशान पर शिकारियों को इकट्ठा करने गया है।’

हम गांव के बाहर निकले। धुंध की वजह से सूर्य दिखाई नहीं दे रहा था। दो मील चलकर धुआं दिखाई पड़ा। समीप जाकर देखा कि शिकारी आलू भून रहे हैं और आपस में बातें कर रहे हैं। दुगार भी वहीं था। हमारे पहुंचने पर वे सब उठ खड़े हुए। रीछ को घेरने के लिए दुगार उन सबको लेकर जंगल की ओर चल दिया। हम भी उसके पीछे हो लिए। आधा मील चलने पर दुगार ने कहा कि अब कहीं बैठ जाना उचित है। मैंने अपनी दोनों बंदूकों को भली-भांति देखकर सोचा कि कहां खड़ा होना चाहिए? तीन कदम पीछे हटकर एक ऊंचा वृक्ष था। अचानक जंगल में से दुगार का शब्द सुनाई दिया- ‘वह उठा, वह उठा।’ इस पर सब शिकारी बोल उठे, सारा जंगल गूंज पड़ा। 
 
मैं घात में था कि...
 
मैं घात में था कि रीछ दिखाई पड़ा और मैंने तुरंत गोली छोड़ी, परंतु खाली गई और रीछ भाग गया। मैंने देखा साथी ने निशाना लगाया। परंतु वह गोली भी खाली गई, क्योंकि यदि रीछ गिर जाता, तो साथी अवश्य उसके पीछे दौड़ता। फिर देखता हूं कि रीछ डरा हुआ अंधाधुंध भागा मेरी ओर आ रहा है। मैंने गोली मारी, परंतु खाली गई। मैं दूसरी बंदूक उठाना ही चाहता था कि उसने झपटकर मुझे दबा लिया और लगा मेरा मुंह नोंचने। जो कष्ट मुझे उस समय हो रहा था, मैं उसका वर्णन नहीं कर सकता। इतने में दुगार और साथी रीछ को मेरे ऊपर बैठा देखकर मेरी सहायता को दौड़े। रीछ उन्हें देख, डरकर भाग गया। सारांश यह कि मैं घायल हो गया और हमें खाली हाथ गांव लौटना पड़ा। कुछ समय बाद हम फिर उस रीछ को मारने के लिए गए, मैं फिर भी उसे न मार सका। उसे दुगार ने मारा, वह बड़ा भारी रीछ था। उसकी खाल अब तक मेरे कमरे में बिछी हुई है।