![शारीरिक तौर पर सक्रिय बच्चे तनाव से बेहतर तरीके से निपटते हैं, रिसर्च में खुलासा शारीरिक तौर पर सक्रिय बच्चे तनाव से बेहतर तरीके से निपटते हैं, रिसर्च में खुलासा](https://cms.theinstantstory.com/gall_content/2023/9/2023_9$2023091113444511981_0_news_large_1.jpeg)
शारीरिक तौर पर सक्रिय बच्चे तनाव से बेहतर तरीके से निपटते हैं, रिसर्च में खुलासा
Stress Management: नए शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि तनाव से निपटने के लिए कसरत करना स्कूल के बच्चों के लिए भी कारगर होता है। अध्ययन में पाया गया कि दो बच्चे शारीरिक तौर पर ज्यादा सक्रिय रहते हैं, वे बाकी बच्चों की तुलना में तनाव से निपटने में बेहतर तरह से निपटने में सक्षम होते हैं। इसका संबंध कसरत का कोर्टिसॉल स्तरों (Cortisol Levels) पर नियंत्रण से था।
तनाव से निपटने के लिए वयस्कों को कसरत करने की सलाह दी जाती है। बताया जाता है कि शारीरिक सक्रियता तनाव को कम करने में बहुत सहायक होती है। उम्र बढ़ने का साथ बढ़ते तनाव का एक कारण घटती शारीरिक सक्रियता भी बताया जाता है। लेकिन क्या यह नियम बच्चों पर भी लागू होता है। क्या शारीरिक तौर पर ज्यादा सक्रिय बच्चे यानि ज्यादा खेलने कूदने वाले बच्चे अपने स्कूल के तनाव का बेहतर तरह से प्रबंधन कर सकते हैं। नए शोध यही पड़ताल करने का फैसला किया है और अपने अध्ययन में पाया कि शारीरिक तौर से ज्यादा सक्रिय बच्चे तनाव से बेहतर तरह से निपटते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ बेसल की अगुआई में शोधकर्ताओं की एक टीम ने 10 से 13 साल के बच्चों के साथ प्रयोग कर पाया कि यदि बच्चों को रोजाना बहुत सारी कसरत करवाई जाए तो वे तनाव से अच्छे से निपट सकते हैं। शोधकर्ताओं ने बच्चों को एक सेंसर पहनने को कहा जो उनकी दैनिक गतिविधियों की निगारानी करता था जिसके बाद बच्चों को तनावपूर्ण और बिना तनाव वाले कार्य करने को दिए गए।
तनावपूर्ण कार्य में बच्चों को एक कहानी पढ़ने को कहा गाय जिसमें महत्वाकांक्षी अंत था। पढ़ने के बाद उन्हें पांच मिनट की तैयारी का वक्त दिया गया जिसमें उन्हें पैनल के सामने आगे की संभावित कहानी बतानी थी। बच्चों को पता नहीं था कि उन्हें जानबूझ कर कम समय दिया गया था। इसके बाद उन्हें गणितीय चुनौती दी गई, जिसमें उन्होंने एक तीन अंकों की संख्या को लागातर किसी मान से 5 मिनट तक घटाने को कहा गया। साथ ही यह भी कहा गया कि गलती होने पर उन्हें वही काम दोहराना होगा।
एक अन्य सत्र में बच्चों को दूसरी कहानी पढ़ने को दी गई है जिसमें उन्हें अनौपचारिक चर्चा में शामिल किया और किसी तरह का दबाव या तनाव नहीं दिया गया। दोनों सत्रों के दौरान बच्चों की लार के नमूने लिए गए जिससे कोरिस्टॉल के स्तर को जांचा जा सके। बेसल में स्पोर्ट, एक्सरसाइज एंड हेल्थ की विशेषज्ञ और वरिष्ठ लेखक सैबस्टियन लुडिगा ने बताया कि शोधकर्ता यह जानना चाहते थे कि क्या बच्चों लैब के नियंत्रित हालात में ज्यादा मजबूत थे।
प्रयोगों से खुलासा हुआ कि जो प्रतिभागी रोजाना एक घंटे से ज्यादा की कसरत करते ते उन्होंने कम कॉर्टिसॉल निकाला जो तनावपूर्ण हालात में निकलता है। जबकि कम सक्रिय बच्चों में इसकी मात्रा अधिक थी। अध्ययन के प्रमुख लेखक मैनुअल हैंके का कहना है कि नियमित तौर पर सक्रिय बच्चों का मनोवैज्ञानिक तनाव प्रतिक्रिया कम होती देखी गई। हैरानी की बात यह थी कि ऐसा ही अंतर अपरिचित हालात में कंट्रोल कार्य में भी देखा गया।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इसकी एक संभावित व्याख्या ये हो सकती है कि कसरत के दौरान कोर्टिसॉल स्तर भी बढ़ जाते हैं। लुडिगा का कहना है कि जब बच्चे नियमित तौरपर दौड़ते हैं, तैरते, या चढ़ाई वगैरह करते हैं तो दिमाग कार्टिसॉल के बढ़ने को सकारात्मकता से जोड़ता है जिससे इससे परीक्षा के क्षणों को कोर्टिसॉल बहुत ज्यादा नहीं बढ़ता है।
बच्चों के मुंह की लार के नमूनों की जांच करने के अलावा शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों के संज्ञानात्मक प्रतिक्रियाओं पर भी निगरानी रखी जिसके लिए उन्होंने इलेक्ट्रोएनसेफैलोग्राम (ईईजी) का उपयोग किया। हैंके का कहना है कि तनाव सोच में बाधा डाल सकता है। इसलिए अब शोधकर्ताओं का अगला लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि क्या शारीरिक गतिविधियों को तनाव के संज्ञानात्मक प्रभावों पर भी असर होता है या नहीं। यह अध्ययन जर्नल ऑफ साइंस एंड मेडिसिन इन स्पोर्ट्स में प्रकाशित हुआ है।
यूनिवर्सिटी ऑफ बेसल की अगुआई में शोधकर्ताओं की एक टीम ने 10 से 13 साल के बच्चों के साथ प्रयोग कर पाया कि यदि बच्चों को रोजाना बहुत सारी कसरत करवाई जाए तो वे तनाव से अच्छे से निपट सकते हैं। शोधकर्ताओं ने बच्चों को एक सेंसर पहनने को कहा जो उनकी दैनिक गतिविधियों की निगारानी करता था जिसके बाद बच्चों को तनावपूर्ण और बिना तनाव वाले कार्य करने को दिए गए।
तनावपूर्ण कार्य में बच्चों को एक कहानी पढ़ने को कहा गाय जिसमें महत्वाकांक्षी अंत था। पढ़ने के बाद उन्हें पांच मिनट की तैयारी का वक्त दिया गया जिसमें उन्हें पैनल के सामने आगे की संभावित कहानी बतानी थी। बच्चों को पता नहीं था कि उन्हें जानबूझ कर कम समय दिया गया था। इसके बाद उन्हें गणितीय चुनौती दी गई, जिसमें उन्होंने एक तीन अंकों की संख्या को लागातर किसी मान से 5 मिनट तक घटाने को कहा गया। साथ ही यह भी कहा गया कि गलती होने पर उन्हें वही काम दोहराना होगा।
एक अन्य सत्र में बच्चों को दूसरी कहानी पढ़ने को दी गई है जिसमें उन्हें अनौपचारिक चर्चा में शामिल किया और किसी तरह का दबाव या तनाव नहीं दिया गया। दोनों सत्रों के दौरान बच्चों की लार के नमूने लिए गए जिससे कोरिस्टॉल के स्तर को जांचा जा सके। बेसल में स्पोर्ट, एक्सरसाइज एंड हेल्थ की विशेषज्ञ और वरिष्ठ लेखक सैबस्टियन लुडिगा ने बताया कि शोधकर्ता यह जानना चाहते थे कि क्या बच्चों लैब के नियंत्रित हालात में ज्यादा मजबूत थे।
प्रयोगों से खुलासा हुआ कि जो प्रतिभागी रोजाना एक घंटे से ज्यादा की कसरत करते ते उन्होंने कम कॉर्टिसॉल निकाला जो तनावपूर्ण हालात में निकलता है। जबकि कम सक्रिय बच्चों में इसकी मात्रा अधिक थी। अध्ययन के प्रमुख लेखक मैनुअल हैंके का कहना है कि नियमित तौर पर सक्रिय बच्चों का मनोवैज्ञानिक तनाव प्रतिक्रिया कम होती देखी गई। हैरानी की बात यह थी कि ऐसा ही अंतर अपरिचित हालात में कंट्रोल कार्य में भी देखा गया।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इसकी एक संभावित व्याख्या ये हो सकती है कि कसरत के दौरान कोर्टिसॉल स्तर भी बढ़ जाते हैं। लुडिगा का कहना है कि जब बच्चे नियमित तौरपर दौड़ते हैं, तैरते, या चढ़ाई वगैरह करते हैं तो दिमाग कार्टिसॉल के बढ़ने को सकारात्मकता से जोड़ता है जिससे इससे परीक्षा के क्षणों को कोर्टिसॉल बहुत ज्यादा नहीं बढ़ता है।
बच्चों के मुंह की लार के नमूनों की जांच करने के अलावा शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों के संज्ञानात्मक प्रतिक्रियाओं पर भी निगरानी रखी जिसके लिए उन्होंने इलेक्ट्रोएनसेफैलोग्राम (ईईजी) का उपयोग किया। हैंके का कहना है कि तनाव सोच में बाधा डाल सकता है। इसलिए अब शोधकर्ताओं का अगला लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि क्या शारीरिक गतिविधियों को तनाव के संज्ञानात्मक प्रभावों पर भी असर होता है या नहीं। यह अध्ययन जर्नल ऑफ साइंस एंड मेडिसिन इन स्पोर्ट्स में प्रकाशित हुआ है।